पावस-गीत / नील कुसुम
अम्बर के गृह गान रे, घन-पाहुन आये। इन्द्रधनुष मेचक-रुचि-हारी, पीत वर्ण दामिनि-द्युति न्यारी, प्रिय की छवि पहचान रे, नीलम घन छाये। वृष्टि-विकल घन का गुरु गर्जन, बूँद-बूँद में स्वप्न विसर्जन, वारिद सुकवि समान रे, बरसे कल पाये। तृण, तरु, लता, कुसुम पर सोई, बजने लगी सजल सुधि कोई, सुन-सुन आकुल प्राण रे, लोचन भर आये।

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