बापू
जो कुछ था देय, दिया तुमने, सब लेकर भी हम हाथ पसारे हुए खड़े हैं आशा में; लेकिन, छींटों के आगे जीभ नहीं खुलती, बेबसी बोलती है आँसू की भाषा में। वसुधा को सागर से निकाल बाहर लाये, किरणों का बन्धन काट उन्हें उन्मुक्त किया, आँसुओं-पसीनों से न आग जब बुझ पायी, बापू! तुमने आखिर को अपना रक्त दिया।

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