प्रकाश
किरणों की यह वृष्टि! दीन पर दया करो, धरो, धरो, करुणामय! मेरी बाँह धरो। कोने का मैं एक कुसुम पीला-पीला, छाया से मेरा तन गीला, मन गीला। अन्तर की आर्द्रता न कहीं गँवाऊँ मैं, बीच धूप में पड़ कर सूख न जाऊँ मैं। छाया दो, छाया दो, मुझे छिपाओ हे! इस प्रकाश के विष से मुझे बचाओ हे!

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