अन्वेषी
रोटी को निकले हो? तो कुछ और चलो तुम। प्रेम चाहते हो? तो मंजिल बहुत दूर है। किन्तु, कहीं आलोक खोजने को निकले हो तो क्षितिजों के पार क्षितिज पर चलते जाओ।

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