गिरगिट
पथ की जलती हुई भूमि पर मैंने देखा ध्यानमग्न बूढ़े गिरगिट को (गिरगिट यानी एक बूँद घड़ियाल की) खड़ा, देह को ताने पहने हरा कोट, गरदन पर कालर की उठान, सब ठीक-ठाक। ऐसा लगता था, ज्यों कोई पादड़ी खड़ा हो, या कोई बूढ़ा प्राध्यापक खड़ा-खड़ा कुछ सोच रहा हो निज में डूबा हुआ भूल कर सारे जग को।

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