पाप
मानव है वह जो गिरा है पाप-पंक में, सन्त है जो रो रहा ग्लानि-परिताप से। किन्तु, जो पतन को समझ ही न पाता है, राक्षस है, दोष कर रोष भी दिखाता है।

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