धर्म
दर्शन मात्र विचार, धर्म ही है जीवन। धर्म देखता ऊपर नभ की ओर, ध्येय दर्शन का मन। हमें चाहिए जीवन और विचार भी। अम्बर का सपना भी, यह संसार भी। सिकता के कण में मिला विश्व संचित सारा, प्रच्छन्न पुष्प में देवों का संसार मिला। मुट्ठी मे भीतर बन्द मिला अम्बर अनन्त, अन्तर्हित एक घड़ी में काल अपार मिला। अज्ञात, गहन, धूमिल के पीछे कौन खड़े शासन करते तुम जगद्व्यापिनी माया पर? दिन में सूरज, रजनी में बन नक्षत्र कौन तुम आप दे रहे पहरा अपनी छाया पर? बहुत पूछा, मगर, उत्तर न आया, अधिक कुछ पूछ्ने में और ड़रते हैं। असंभव है जहाँ कुछ सिद्ध करना, नयन को मूँद हम विश्वास करते हैं। सोचता हूँ जब कभी संसार यह आया कहाँ से? चकित मेरी बुद्धि कुछ भी कह न पाती है। और तब कहता, "हृदय अनुमान तो होता यही है, घट अगर है, तो कहीं घटकार भी होगा।" रोटी के पीछे आटा है क्षीर-सा, आटे के पीछे चक्की की तान है, उसके भी पीछे गेहूँ है, वृष्टि है, वर्षा के पीछे अब भी भगवान है।

Read Next