सेतु
तरु से तरु तक रज्जु बाँध कर, वातायन से वातायन तक बाँध कुसुम के हार, उडु से उडु तक कुमुदबन्धु की रश्मि तानकर आँखों से आँखों तक फैला कर रेशम के तार; सेतु मैंने रच दिये सर्वत्र हैं। कल्पने! चाहो जहाँ भी नाच सकती हो।

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