समर निंद्य है / भाग ३
न्याय शान्ति का प्रथम न्यास है जब तक न्याय न आता, जैसा भी हो महल शान्ति का सुदृढ़ नहीं रह पाता। और जिन्हें इस शान्ति-व्यवस्था में सुख-भोग सुलभ है, उनके लिये शान्ति ही जीवन - सार, सिद्धि दुर्लभ है। स्वत्व माँगने से न मिले, संघात पाप हो जायें, बोलो धर्मराज, शोषित वे जियें या कि मिट जायें? किसने कहा पाप है समुचित स्वत्व-प्राप्ति-हित लड़ना? उठा न्याय का खड्ग समर में अभय मारना-मरना? हिंसा का आघात तपस्या ने कब, कहाँ सहा है? देवों का दल सदा दानवों से हारता रहा है। पिया भीष्म ने विष, लाक्षागृह जला, हुए वनवासी, केशकर्षिता प्रिया सभा-सम्मुख कहलायी दासी।

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