रहस्य
तुम समझोगे बात हमारी? उडु-पुंजों के कुंज सघन में, भूल गया मैं पन्थ गगन में, जगे-जगे, आकुल पलकों में बीत गई कल रात हमारी। अस्तोदधि की अरुण लहर में, पूरब-ओर कनक-प्रान्तर में, रँग-सी रही पंख उड़-उड़कर तृष्णा सायं-प्रात हमारी। सुख-दुख में डुबकी-सी देकर, निकली वह देखो, कुछ लेकर, श्वेत, नील दो पद्म करों में, सजनी सध्यःस्नात हमारी।

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