प्लेग
सब देते गालियाँ, बताते औरत बला बुरी है, मर्दों की है प्लेग भयानक, विष में बुझी छुरी है। और कहा करते, "फितूर, झगड़ा, फसाद, खूँरेज़ी, दुनिया पर सारी मुसीबतें इसी प्लेग ने भेजीं।" मैं कहती हूँ, अगर किया करतीं ये तुम्हें तबाह, दौड़-दौड़ कर इन प्लेगों से क्यों करते हो ब्याह? और हिफाजत से रखते हो इन्हें बन्द क्यों घर में? जरा कहीं निकलीं कि दर्द होने लगता क्यों सर में? तुम्हें चाहिए खुश होना यह जान, प्लेग बाहर है, दो घंटे ही सही, मुसीबत से तो फारिग घर है। पर, उलटे, उठने लगता तुममें अजीब उद्वेग, हमें अकेले छोड़ किधर को गई हमारी प्लेग? और गज़ब, खिड़की से कोई प्लेग कहीं यदि झाँके, उठ जातीं क्यों एक साथ बीसों ललचायी आँखें? अगर प्लेग छिप गई, खड़े रहते सब आँख बिछाये, कब चिलमन कुछ हटे, प्लेग फिर कब झाँकी दिखलाये। प्लेग, प्लेग कह हमें चिढ़ाओ, सको नहीं रह दूर, घर में प्लेग बसाने का यह खूब रहा दस्तूर।

Read Next