गा रही कविता युगों से मुग्ध हो
गा रही कविता युगों से मुग्ध हो, मधुर गीतों का न पर, अवसान है। चाँदनी की शेष क्यों होगी सुधा, फूल की रुकती न जब मुस्कान है? चन्द्रिका किस रूपसी की है हँसी? दूब यह किसकी अनन्त दुकूल है? किस परी के प्रेम की मधु कल्पना व्योम में नक्षत्र, वन में फूल है? नत-नयन कर में कुसुम-जयमाल ले, भाल में कौमार्य की बेंदी दिये, क्षितिज पर आकर खड़ी होती उषा नित्य किस सौभाग्यशाली के लिए? धान की पी चन्द्रधौत हरीतिमा आज है उन्मादिनी कविता-परी, दौड़ती तितली बनी वह फूल पर, लोटती भू पर जहाँ दूर्वा हरी ।

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