ताण्डव
नाचो, हे नाचो, नटवर ! चन्द्रचूड़ ! त्रिनयन ! गंगाधर ! आदि-प्रलय ! अवढर ! शंकर! नाचो, हे नाचो, नटवर ! आदि लास, अविगत, अनादि स्वन, अमर नृत्य - गति, ताल चिरन्तन, अंगभंगि, हुंकृति-झंकृति कर थिरक-थिरक हे विश्वम्भर ! नाचो, हे नाचो, नटवर ! सुन शृंगी-निर्घोष पुरातन, उठे सृष्टि-हृंत्‌ में नव-स्पन्दन, विस्फारित लख काल-नेत्र फिर काँपे त्रस्त अतनु मन-ही-मन । स्वर-खरभर संसार, ध्वनित हो नगपति का कैलास-शिखर । नाचो, हे नाचो, नटवर ! नचे तीव्रगति भूमि कील पर, अट्टहास कर उठें धराधर, उपटे अनल, फटे ज्वालामुख, गरजे उथल-पुथल कर सागर । गिरे दुर्ग जड़ता का, ऐसा प्रलय बुला दो प्रलयंकर ! नाचो, हे नाचो, नटवर  ! घहरें प्रलय-पयोद गगन में, अन्ध-धूम हो व्याप्त भुवन में, बरसे आग, बहे झंझानिल, मचे त्राहि जग के आँगन में, फटे अतल पाताल, धँसे जग, उछल-उछल कूदें भूधर। नाचो, हे नाचो, नटवर  ! प्रभु ! तब पावन नील गगन-तल, विदलित अमित निरीह-निबल-दल, मिटे राष्ट्र, उजडे दरिद्र-जन आह ! सभ्यता आज कर रही असहायों का शोणित-शोषण। पूछो, साक्ष्य भरेंगे निश्चय, नभ के ग्रह-नक्षत्र-निकर ! नाचो, हे नाचो, नटवर  ! नाचो, अग्निखंड भर स्वर में, फूंक-फूंक ज्वाला अम्बर में, अनिल-कोष, द्रुम-दल, जल-थल में, अभय विश्व के उर-अन्तर में, गिरे विभव का दर्प चूर्ण हो, लगे आग इस आडम्बर में, वैभव के उच्चाभिमान में, अहंकार के उच्च शिखर में, स्वामिन्‌, अन्धड़-आग बुला दो, जले पाप जग का क्षण-भर में। डिम-डिम डमरु बजा निज कर में नाचो, नयन तृतीय तरेरे! ओर-छोर तक सृष्टि भस्म हो चिता-भूमि बन जाय अरेरे ! रच दो फिर से इसे विधाता, तुम शिव, सत्य और सुन्दर ! नाचो, हे नाचो, नटवर !

Read Next