शेरसिंह का शस्त्र समर्पण
"ले लो यह शस्त्र है गौरव ग्रहण करने का रहा कर मैं -- अब तो ना लेश मात्र लाल सिंह ! जीवित कलुष पंचनद का देख दिये देता है सिहों का समूह नख-दंत आज अपना " "अरी, रण - रंगिनी ! कपिशा हुई थी लाल तेरा पानी पान कर. दुर्मद तुरंत धर्म दस्युओं की त्रासिनी-- निकल,चली जा त प्रतारणा के कर से" "अरी वह तेरी रही अंतिम जलन क्या ? तोपें मुँह खोले खड़ी देखती थी तरस से चिलियानवाला में आज के पराजित तो विजयी थे कल ही, उनके स्मर वीर कल में तु नाचती लप-लप करती थी --जीभ जैसे यम की उठी तू न लूट त्रास भय से प्रचार को , दारुण निराशा भरी आँखों से देखकर दृप्त अत्याचार को एक पुत्र-वत्सला दुराशामयी विधवा प्रकट पुकार उठी प्राण भरी पीड़ा से -- और भी ; जन्मभूमि, दलित विकल अपमान से त्रस्त हो कराहती थी कैसे फिर रुकती ?" "आज विजयी हों तुमऔर हैं पराजित हम तुम तो कहोगे, इतिहास भी कहेगा यही, किन्तु यह विजय प्रशंसा भरी मन की--एक छलना है वीर भूमि पंचनद वीरता से रिक्त नहीं काठ के हों गोले जहाँ आटा बारूद हों; और पीठ पर हों दुरंत दंशनो का तरस छाती लडती हो भरी आग,बाहु बल से उस युद्ध में तो बस मृत्यु ही विजय है सतलज के तटपर मृत्यु श्यामसिंह की-- देखी होगी तुमने भी वृद्ध वीर मूर्ति वह, तोड़ा गया पुल प्रत्यावर्तन के पथ में अपने प्रवंचको से लिखता अदृष्ट था विधाता वाम कर से छल में विलीन बल--बल में विषाद था -- विकल विलास का यवनों के हाथों से स्वतंत्रता को छीन कर खेलता था यौवन-विलासी मत्त पंचनद -- प्रणय-विहीन एक वासना की छाया में फिर भी लड़े थे हम निज प्राण-पण से कहेगी शतद्रु शत-संगरों की साक्षिणी सिक्ख थे सजीव -- स्वत्व-रक्षा में प्रबुद्ध थे . जीना जानते थे मरने को मानते थे सिक्ख किन्तु, आज उनका अतीत वीर-गाथा हुई -- जीत होती जिसकी वही है आज हारा हुआ "उर्जस्वित रक्त और उमंग भरा मन था जिन युवकों के मणिबंधों में अबंध बल इतना भरा था जो उलटता शतध्वनियों को गोले जिनके थे गेंद अग्निमयी क्रीड़ा थी रक्त की नदी में सिर ऊँचा छाती कर तैरते थे वीर पंचनद के सपूत मातृभूमि के सो गए प्रतारना की थपकी लगी उन्हें छल-बलिवेदी पर आज सब सो गए पुतली प्रणयिनी का बाहुपाश खोलकर, दूध भरी दूध-सी दुलार भरी माँ गोद सूनी कर सो गए हुआ है सुना पंचनद भिक्षा नहीं मांगता हूँ आज इन प्राणों की क्योंकि,प्राण जिसका आहार,वही इसकी रखवाली आप करता है, महाकाल ही; शेर पंचनद का प्रवीर रणजीतसिंह आज मरता है देखो; सो रहा पंचनद आज उसी शोक में यह तलवार लो ले लो यह थाती है"

Read Next