उस दिन जब जीवन के पथ में,
छिन्न पात्र ले कम्पित कर में,
मधु-भिक्षा की रटन अधर में,
इस अनजाने निकट नगर में,
आ पँहुचा था एक अकिंचन।
उस दिन जब जीवन के पथ में,
लोगों की आँखे ललचाईं,
स्वयं मानने को कुछ आईं,
मधु सरिता उफनी अकुलाई,
देने को अपना संचित धन।
उस दिन जब जीवन के पथ में,
फूलों ने पंखुरियाँ खोलीं,
आँखें करने लगी ठिठोली;
हृदयों ने न सम्भाली झोली,
लुटने लगे विकल पगन मन।
उस दिन जब जीवन के पथ में,
छिन्न पात्र में था भर आता –
वह रस बरबस था न समाता;
स्वयं चकित सा समझ न पाता
कहाँ छिपा था ऐसा मधुवन !
उस दिन जब जीवन के पथ में,
मधु-मंगल की वर्षा होती,
काँटों ने भी पहना मोती
जिसे बटोर रही थी रोती-
आशा, समझ मिला अपना धन।