लहर1
वे कुछ दिन कितने सुंदर थे ? जब सावन घन सघन बरसते इन आँखों की छाया भर थे सुरधनु रंजित नवजलधर से- भरे क्षितिज व्यापी अंबर से मिले चूमते जब सरिता के हरित कूल युग मधुर अधर थे प्राण पपीहे के स्वर वाली बरस रही थी जब हरियाली रस जलकन मालती मुकुल से जो मदमाते गंध विधुर थे चित्र खींचती थी जब चपला नील मेघ पट पर वह विरला मेरी जीवन स्मृति के जिसमें खिल उठते वे रूप मधुर थे

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