कब?
शून्य हृदय में प्रेम-जलद-माला कब फिर घिर आवेगी? वर्षा इन आँखों से होगी, कब हरियाली छावेगी? रिक्त हो रही मधु से सौरभ सूख रहा है आतप हैं; सुमन कली खिलकर कब अपनी पंखुड़ियाँ बिखरावेगी? लम्बी विश्व कथा में सुख की निद्रा-सी इन आँखों में- सरस मधुर छवि शान्त तुम्हारी कब आकर बस जावेगी? मन-मयूर कब नाच उठेगा कादंबिनी छटा लखकर; शीतल आलिंगन करने को सुरभि लहरियाँ आवेगी? बढ़ उमंग-सरिता आवेगी आर्द्र किये रूखी सिकता; सकल कामना स्रोत लीन हो पूर्ण विरति कब पावेगी?

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