गान
जननी जिसकी जन्मभूमि हो; वसुन्धरा ही काशी हो विश्व स्वदेश, भ्रातृ मानव हों, पिता परम अविनाशी हो दम्भ न छुए चरण-रेणु वह धर्म नित्य-यौवनशाली सदा सशक्त करों से जिसकी करता रहता रखवाली शीतल मस्तक, गर्म रक्त, नीचा सिर हो, ऊँचा कर भी हँसती हो कमला जिसके करूणा-कटाक्ष में, तिस पर भी खुले-किवाड़-सदृश हो छाती सबसे ही मिल जाने को मानस शांत, सरोज-हृदय हो सुरभि सहित खिल जाने को जो अछूत का जगन्नाथ हो, कृषक-करों का ढृढ हल हो दुखिया की आँखों का आँसू और मजूरों का कल हो प्रेम भरा हो जीवन में, हो जीवन जिसकी कृतियों में अचल सत्य संकल्प रहे, न रहे सोता जागृतियों में ऐसे युवक चिरंजीवी हो , देश बना सुख-राशी हो और इसलिये आगे वे ही महापुरुष अविनाशी हो

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