महाकवि तुलसीदास
अखिल विश्व में रमा हुआ है राम हमारा सकल चराचर जिसका क्रीड़ापूर्ण पसारा इस शुभ सत्ता को जिसमे अनुभूत किया था मानवता को सदय राम का रूप दिया था नाम-निरूपण किया रत्न से मूल्य निकाला अन्धकार-भव-बीच नाम-मणि-दीपक बाला दीन रहा, पर चिन्तामणि वितरण करता था भक्ति-सुधा से जो सन्ताप हरण करता था प्रभु का निर्भय-सेवक था, स्वामी था अपना जाग चुका था, जग था जिसके आगे सपना प्रबल-प्रचारक था जो उस प्रभु की प्रभुता का अनुभव था सम्पूर्ण जिसे उसकी विभुता का राम छोड़कर और की, जिसने कभी न आस की 'राम-चरित-मानस'-कमल जय हो तुलसीदास की

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