सौन्दर्य
नील नीरद देखकर आकाश में क्यो खड़ा चातक रहा किस आश में क्यो चकोरों को हुआ उल्लास है क्या कलानिधि का अपूर्व विकास है क्या हुआ जो देखकर कमलावली मत्त होकर गूँजती भ्रमरावली कंटको में जो खिला यह फूल है देखते हो क्यों हृदय अनुकूल है है यही सौन्दर्य में सुषमा बड़ी लौह-हिय को आँच इसकी ही कड़ी देखने के साथ ही सुन्दर वदन दीख पड़ता है सजा सुखमय सदन देखते ही रूप मन प्रमुदित हुआ प्राण भी अमोद से सुरभित हुआ रस हुआ रसना में उसके बोेलकर स्पर्श करता सुख हृदय को खोलकर लोग प्रिय-दर्शन बताते इन्दु को देखकर सौन्दर्य के इक विन्दु को किन्तु प्रिय-दर्शन स्वयं सौन्दर्य है सब जगह इसकी प्रभा ही वर्य है जो पथिक होता कभी इस चाह में वह तुरत ही लुट गया इस राह में मानवी या प्राकृतिक सुषमा सभी दिव्य शिल्पी के कला-कौशल सभी देख लो जी-भर इसे देखा करो इस कलम से चित्त पर रेखा करो लिखते-लिखते चित्र वह बन जायगा सत्य-सुन्दर तब प्रकट हो जायगा

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