कोकिल
नया हृदय है, नया समय है, नया कुंज है नये कमल-दल-बीच गया किंजल्क-पुंज है नया तुम्हारा राग मनोहर श्रुति सुखकारी नया कण्ठ कमनीय, वाणि वीणा-अनुकारी यद्यपि है अज्ञात ध्वनि कोकिल ! तेरी मोदमय तो भी मन सुनकर हुआ शीतल, शांत, विनोदमय विकसे नवल रसाल मिले मदमाते मधुकर आलबाल मकरन्द-विन्दु से भरे मनोहर मंजु मलय-हिल्लोल हिलाता है डाली को मीठे फल के लिये बुलाता जो माली को बैठे किसलय-पुंज में उसके ही अनुराग से कोकिल क्या तुम गा रहे, अहा रसीले राग से कुमुद-बन्धु उल्लास-सहित है नभ में आया बहुत पूर्व से दौड़ा था, अब अवसर पाया रूका हुआ है गगन-बीच इस अभिलाषा से ले निकाल कुछ अर्थ तुम्हारी नव भाषा से गाओ नव उत्साह से, रूको न पल-भर के लिये कोकिल ! मलयज पवन में भरने को स्वर के लिये

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