तुम्हारा स्मरण
सकल वेदना विस्मृत होती स्मरण तुम्हारा जब होता विश्वबोध हो जाता है जिससे न मनुष्य कभी रोता आँख बंद कर देखे कोई रहे निराले में जाकर त्रिपुटी में, या कुटी बना ले समाधि में खाये गोता खड़े विश्व-जनता में प्यारे हम तो तुमको पाते हैं तुम ऐसे सर्वत्र-सुलभ को पाकर कौन भला खोता प्रसन्न है हम उसमे, तेरी- प्रसन्नता जिसमें होवे अहो तृषित प्राणों के जीवन निर्मल प्रेम-सुधा-सोता नये-नये कौतुक दिखलाकर जितना दूर किया चाहो उतना ही यह दौड़-दौड़कर चंचल हृदय निकट होता

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