प्रथम प्रभात
मनोवृत्तियाँ खग-कुल-सी थी सो रही, अन्तःकरण नवीन मनोहर नीड़ में नील गगन-सा शान्त हृदय भी हो रहा, बाह्य आन्तरिक प्रकृति सभी सोती रही स्पन्दन-हीन नवीन मुकुल-मन तृष्ट था अपने ही प्रच्छन्न विमल मकरन्द से अहा! अचानक किस मलयानिल ने तभी, (फूलों के सौरभ से पूरा लदा हुआ)- आते ही कर स्पर्श गुदगुदाया हमें, खूली आँख, आनन्द-दृश्य दिखला दिया मनोवेग मधुकर-सा फिर तो गूँज के, मधुर-मधुर स्वर्गीय गान गाने लगा वर्षा होने लगी कुसुम-मकरन्द की, प्राण-पपीहा बोल उठा आनन्द में, कैसी छवि ने बाल अरुण सी प्रकट हो, शून्य हृदय को नवल राग-रंजित किया सद्यःस्नात हुआ फिर प्रेम-सुतीर्थ में, मन पवित्र उत्साहपूर्ण भी हो गया, विश्व विमल आनन्द भवन-सा बन रहा मेरे जीवन का वह प्रथम प्रभात था

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