वन्दना
जयति प्रेम-निधि ! जिसकी करूणा नौका पार लगाती है जयति महासंगीत ! विश्‍व-वीणा जिसकी ध्वनि गाती है कादम्‍िबनी कृपा की जिसकी सुधा-नीर बरसाती है भव-कानन की धरा हरित हो जिससे शोभा पाती है निर्विकार लीलामय ! तेरी शक्ति न जानी जाती है ओतप्रोत हो तो भी सबकी वाणी गुण-गुना गाती है गदगद्-हृदय-निःसृता यह भी वाणी दौड़ी जाती है प्रभु ! तेरे चरणों में पुलकित होकर प्रणति जनाती है

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