नमस्कार
जिस मंदिर का द्वार सदा उन्मुक्त रहा है जिस मंदिर में रंक-नरेश समान रहा है जिसके हैं आराम प्रकृति-कानन ही सारे जिस मंदिर के दीप इन्दु, दिनकर औ’ तारे उस मंदिर के नाथ को, निरूपम निरमय स्वस्थ को नमस्कार मेरा सदा पूरे विश्‍व-गृहस्थ को

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