अंत में
हमें पैदा नहीं होना था हमें लड़ना नहीं था हमें तो हेमकुंठ पर बैठ कर भक्ति करनी थी लेकिन जब सतलुज के पानी से भाप उठी जब क़ाज़ी नज़रुल इस्लाम की जुबाान रुकी जब लड़को के पास देखा 'जेम्स बांड' तो मैं कह उठा, चल भाई संत संधू नीचे धरती पर चले पापों का बोझ तो बढ़ता जाता हैं और अब हम आएं है यह लो हमारा ज़फरनामा हमारे हिस्से की कटार हमें दे दो हमारा पेट हाज़िर हैं।

Read Next