जहाँ में थी बस इक अफ़्वाह तेरे जल्वों की
जहाँ में थी बस इक अफ़्वाह तेरे जल्वों की चराग़-ए-दैर-ओ-हरम झिलमिलाए हैं क्या क्या

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