फ़ज़ा तबस्सुम-ए-सुब्ह-ए-बहार थी लेकिन
फ़ज़ा तबस्सुम-ए-सुब्ह-ए-बहार थी लेकिन पहुँच के मंज़िल-ए-जानाँ पे आँख भर आई

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