शाम-ए-ग़म कुछ उस निगाह-ए-नाज़ की बातें करो
शाम-ए-ग़म कुछ उस निगाह-ए-नाज़ की बातें करो बे-ख़ुदी बढ़ती चली है राज़ की बातें करो ये सुकूत-ए-नाज़ ये दिल की रगों का टूटना ख़ामुशी में कुछ शिकस्त-ए-साज़ की बातें निकहत-ए-ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ दास्तान-ए-शाम-ए-ग़म सुब्ह होने तक इसी अंदाज़ की बातें करो हर रग-ए-दिल वज्द में आती रहे दुखती रहे यूँही उस के जा-ओ-बेजा नाज़ की बातें करो जौ अदम की जान है जो है पयाम-ए-ज़िंदगी इस सुकूत-ए-राज़ इस आवाज़ की बातें करो इश्क़ रुस्वा हो चला बे-कैफ़ सा बेज़ार सा आज इस की नर्गिस-ए-ग़म्माज़ की बातें करो नाम भी लेना है जिस का इक जहान-ए-रंग-ओ-बू दोस्तो उस नौ-बहार-ए-नाज़ की बातें करो किस लिए उज़्र-ए-तग़ाफुल किस लिए इल्ज़ाम-ए-इश्क़ आज चर्ख़ख़-ए-तफ़्रक़ा पर्वाज़ की बातें करो कुछ क़फ़स की तीलियों से छन रहा है नूर सा कुछ फ़ज़ा कुछ हसरत-ए-परवाज़ की बातें करो जो हयात-ए-जाविदाँ है जो है मर्ग-ए-ना-गहाँ आज कुछ इस नाज़ उस अंदाज़ की बातें करो इश्क़-ए-बे-परवा भी अब कुछ ना-शकेबा हो चला शोख़ी-ए-हुस्न-ए-करिश्मा-साज़ की बातें करो जिस की फ़ुर्क़त ने पलट दी इश्क़ की काया 'फ़िराक़' आज उस ईसा-नफ़स दम-साज़ की बातें करो

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