लुत्फ़-सामाँ इताब-ए-यार भी है
लुत्फ़-सामाँ इताब-ए-यार भी है महरम-ए-इश्क़ शर्मसार भी है सुस्त-पैमान ओ बे-नियाज़ सही हुस्न तस्वीर-ए-इंतिज़ार भी है क्या करे वो निगाह-ए-लुत्फ़ कि इश्क़ शादमाँ भी है सोगवार भी है गुलशन-ए-इश्क़ हूँ ख़िज़ाँ मेरी वज्ह-ए-रंगीनी-ए-बहार भी है उक़्दा-ए-इश्क़ को न तू समझा यही उक़्दा कुशूद-ए-कार भी है अपनी तक़दीर अपने हाथ में ले शामिल-ए-जब्र इख़्तियार भी है आप अपना चढ़ाव अपना उतार ज़िंदगी नश्शा है ख़ुमार भी है उन निगाहों में है शिकायत सी इश्क़ शायद जफ़ा-शिआर भी है दिल से है दूर भी निगाह तिरी दिल के अंदर है दिल के पार भी है सर-ब-सर ग़र्क़-ए-नूर हो लेकिन ज़िंदगी इकतिसाब-ए-नार भी है कौन तरग़ीब-ए-होश दे कि जुनूँ बे-ख़बर भी है होशियार भी है ख़लवत-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ भी है उदास सर्द कुछ बज़्म-ए-रोज़गार भी है राज़ उस आँख का नहीं खुलता दिल शकेबा भी बे-क़रार भी है ख़ुद तुझे भी हुई न जिन की ख़बर उन जफ़ाओं का कुछ शुमार भी है इस में लाखों निज़ाम-ए-शम्सी हैं यूँ तो दिल तीरा-रोज़गार भी है इस की ज़ौ उस की गर्मियाँ मत पूछ ज़िंदगी नूर भी है नार भी है इश्क़-ए-हिज्राँ-नसीब का भी है ध्यान तिरे वा'दे का ए'तिबार भी है इश्क़ ही से हैं मंज़िलें आबाद कारवाँ कारवाँ पुकार भी है कोई समझा उसे न देख सका निगह-ए-शोख़ शर्मसार भी है उस से छुट कर ये सोचता हूँ 'फ़िराक़' इस में कुछ अपना इख़्तियार भी है

Read Next