हो के सर-ता-ब-क़दम आलम-ए-असरार चला
हो के सर-ता-ब-क़दम आलम-ए-असरार चला जो चला मय-कदा-ए-इश्क़ से सरशार चला हमरह-ए-हुस्न इक अंबोह-ए-ख़रीदार चला साथ इस जिंस के बाज़ार का बाज़ार चला न हुआ राह-ए-मोहब्बत में कोई ओहदा-बरा जो सुबुक-दोश हुआ वो भी गिराँ-बार चला उन का जो हाल कि पहले था वही हाल रहा तेरे ग़म-कुश्तों से इक़रार न इंकार चला आसमाँ हो कि क़यामत हो कि हो तीर-ए-क़ज़ा चाल उस फ़ित्ना-ए-दौराँ से हर इक बार चला ज़ौक़-ए-नज़्ज़ारा उसी का है जहाँ में तुझ को देख कर भी जो लिए हसरत-ए-दीदार चला हुस्न-ए-काफ़िर से किसी की न गई पेश 'फ़िराक़' शिकवा यारों का न शुकराना-ए-अग़्यार चला

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