आधी रात
सियाह पेड़ हैं अब आप अपनी परछाईं ज़मीं से ता-मह-ओ-अंजुम सुकूत के मीनार जिधर निगाह करें इक अथाह गुम-शुदगी इक एक कर के फ़सुर्दा चराग़ों की पलकें झपक गईं जो खुली हैं झपकने वाली हैं झलक रहा है पड़ा चाँदनी के दर्पन में रसीले कैफ़ भरे मंज़रों का जागता ख़्वाब फ़लक पे तारों को पहली जमाहियाँ आईं तमोलियों की दूकानें कहीं कहीं हैं खुली कुछ ऊँघती हुई बढ़ती हैं शाह-राहों पर सवारियों के बड़े घुंघरूओं की झंकारें खड़ा है ओस में चुप-चाप हर सिंगार का पेड़ दुल्हन हो जैसे हया की सुगंध से बोझल ये मौज-ए-नूर ये भरपूर ये खिली हुई रात कि जैसे खिलता चला जाए इक सफ़ेद कँवल सिपाह-ए-रूस है अब कितनी दूर बर्लिन से जगा रहा है कोई आधी रात का जादू छलक रही है ख़ुम-ए-ग़ैब से शराब-ए-वजूद फ़ज़ा-ए-नीम नर्गिस-ए-ख़ुमारआलूद कँवल की चुटकियों में बंद है नदी का सुहाग ये रस का सेज ये सुकुमार ये सुकोमल गात नयन कमल की झपक काम-रूप का जादू ये रस्मसाई पलक की घनी घनी परछाईं फ़लक पे बिखरे हुए चाँद और सितारों की चमकती उँगलियों से छिड़ के साज़ फ़ितरत के तराने जागने वाले हैं तुम भी जाग उठो शुआ-ए-महर ने यूँ उन को चूम चूम लिया नदी के बीच कुमुदनी के फूल खिल उठ्ठे न मुफ़्लिसी हो तो कितनी हसीन है दुनिया ये झाएँ झाएँ सी रह रह के एक झींगुर की हिना की टट्टियों में नर्म सरसराहट सी फ़ज़ा के सीने में ख़ामोश सनसनाहट सी ये काएनात अब इक नींद ले चुकी होगी ये महव-ए-ख़्वाब हैं रंगीन मछलियाँ तह-ए-आब कि हौज़-ए-सेहन में अब इन की चश्मकें भी नहीं ये सर-निगूँ हैं सर-ए-शाख़ फूल गुड़हल के कि जैसे बे-बुझे अंगारे ठंडे पड़ जाएँ ये चाँदनी है कि उमडा हुआ है रस-सागर इक आदमी है कि इतना दुखी है दुनिया में क़रीब चाँद के मंडला रही है इक चिड़िया भँवर में नूर के करवट से जैसे नाव चले कि जैसे सीना-ए-शाइर में कोई ख़्वाब पले वो ख़्वाब साँचे में जिस के नई हयात ढले वो ख़्वाब जिस से पुराना निज़ाम-ए-ग़म बदले कहाँ से आती है मदमालती लता की लिपट कि जैसे सैकड़ों परियाँ गुलाबियाँ छिड़काएँ कि जैसे सैकड़ों बन-देवियों ने झूले पर अदा-ए-ख़ास से इक साथ बाल खोल दिए लगे हैं कान सितारों के जिस की आहट पर इस इंक़लाब की कोई ख़बर नहीं आती दिल-ए-नुजूम धड़कते हैं कान बजते हैं ये साँस लेती हुई काएनात ये शब-ए-माह ये पुर-सुकूँ ये पुर-असरार ये उदास समाँ ये नर्म नर्म हवाओं के नील-गूँ झोंके फ़ज़ा की ओट में मर्दों की गुनगुनाहट है ये रात मौत की बे-रंग मुस्कुराहट है धुआँ धुआँ से मनाज़िर तमाम नम-दीदा ख़ुनुक धुँदलके की आँखें भी नीम ख़्वाबीदा सितारे हैं कि जहाँ पर है आँसुओं का कफ़न हयात पर्दा-ए-शब में बदलती है पहलू कुछ और जाग उठा आधी रात का जादू ज़माना कितना लड़ाई को रह गया होगा मिरे ख़याल में अब एक बज रहा होगा गुलों ने चादर-ए-शबनम में मुँह लपेट लिया लबों पे सो गई कलियों की मुस्कुराहट भी ज़रा भी सुम्बुल-ए-तुर्की लटें नहीं हिलतीं सुकूत-ए-नीम-शबी की हदें नहीं मिलतीं अब इंक़लाब में शायद ज़ियादा देर नहीं गुज़र रहे हैं कई कारवाँ धुँदलके में सुकूत-ए-नीम-शबी है उन्हीं के पाँव की चाप कुछ और जाग उठा आधी रात का जादू नई ज़मीन नया आसमाँ नई दुनिया नए सितारे नई गर्दिशें नए दिन रात ज़मीं से ता-ब-फ़लक इंतिज़ार का आलम फ़ज़ा-ए-ज़र्द में धुँदले ग़ुबार का आलम हयात मौत-नुमा इंतिशार का आलम है मौज-ए-दूद कि धुँदली फ़ज़ा की नब्ज़ें हैं तमाम ख़स्तगी-ओ-माँदगी ये दौर-ए-हयात थके थके से ये तारे थकी थकी सी ये रात ये सर्द सर्द ये बे-जान फीकी फीकी चमक निज़ाम-ए-सानिया की मौत का पसीना है ख़ुद अपने आप में ये काएनात डूब गई ख़ुद अपनी कोख से फिर जगमगा के उभरेगी बदल के केचुली जिस तरह नाग लहराए ख़ुनुक फ़ज़ाओं में रक़्साँ हैं चाँद की किरनें कि आबगीनों पे पड़ती है नर्म नर्म फुवार ये मौज-ए-ग़फ़लत-ए-मासूम ये ख़ुमार-ए-बदन ये साँस नींद में डूबी ये आँख मदमाती अब आओ मेरे कलेजे से लग के सो जाओ ये पलकें बंद करो और मुझ में खो जाओ

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