आज़ादा-मनिश रह दुनिया में परवा-ए-उम्मीद-ओ-बीम न कर
आज़ादा-मनिश रह दुनिया में परवा-ए-उम्मीद-ओ-बीम न कर जब तक न मिलें फ़ितरत के क़दम ख़म देख सर-ए-तस्लीम न कर सीने में है उस के सोज़ अगर शैताँ के क़दम ले आँखों पर बेगाना-ए-दर्द-ए-दिल है अगर जिबरील की भी ताज़ीम न कर कितनी ही शुआएँ अब्र में हों ख़ुर्शीद-ए-जुनूँ पर ईमाँ ला कितने ही दलाएल रौशन हों दानिश को कभी तस्लीम न कर साँचों में बराबर ढलता जा रफ़्तार-ए-जहाँ से फेर न मुँह तनसीख़ तो क्या इस दफ़्तर में जीना है तो कुछ तरमीम न कर ऐ 'जोश' हुजूम-ए-कुल्फ़त में फ़रियाद ओ फ़ुग़ाँ से काम न ले घट जाएगा इस से दिल का असर अजज़ा-ए-तपिश तक़्सीम न कर

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