आ फ़स्ल-ए-गुल है ग़र्क़-ए-तमन्ना तिरे लिए
आ फ़स्ल-ए-गुल है ग़र्क़-ए-तमन्ना तिरे लिए डूबा हुआ है रंग में सहरा तिरे लिए साहिल पे सर्व-ए-नाज़ को दे ज़हमत-ए-ख़िराम बल खा रहा है ख़ाक पे दरिया तिरे लिए ईफ़ा-ए-अहद कर कि है मुद्दत से बे-क़रार रूह-ए-वफ़ा-ए-वादा-ए-फ़र्दा तिरे लिए शानों पे अब तो काकुल-ए-शब-रंग खोल दे बिखरी हुई है ज़ुल्फ़-ए-तमन्ना तिरे लिए उठ चश्म-ए-जावेदाना-ए-साग़र-फ़रोश उठ मचली हुई है लर्ज़िश-ए-सहबा तिरे लिए ऐ आफ़्ताब-ए-जल्वा-ए-जानाँ बुलंद हो खोया हुआ है मतला-ए-दुनिया तिरे लिए मौज-ए-शमीम-ए-सुम्बुल-ओ-रैहाँ के दरमियाँ वा है मुसाहिबत का दरीचा तिरे लिए आ और दाद दे कि ब-ईं चश्म-ए-हक़-निगर खाए हुए हूँ ज़ीस्त का धोका तिरे लिए सब्ज़े का फ़र्श अब्र का ख़ेमा गुलों का इत्र गुलशन में एहतिमाम है क्या क्या तिरे लिए तुग़्यान-ए-गुल शबाब पे बुलबुल ख़रोश में इक हश्र सा है बाग़ में बरपा तिरे लिए 'जोश' और नंग-ए-ख़िदमत-ए-सुल्तान ओ पास-ए-होश ये भी किए हुए है गवारा तिरे लिए

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