आओ काबे से उठें सू-ए-सनम-ख़ाना चलें
आओ काबे से उठें सू-ए-सनम-ख़ाना चलें ताबा-ए-फ़क़्र कहे सवलत-ए-शाहाना चलें काँप उठे बारगह-ए-सर-ए-अफ़ाफ़-ए-मलकूत यूँ मआसी का लुंढाते हुए पैमाना चलें आओ ऐ ज़मज़मा-संजान-ए-सरा पर्दा-ए-गुल ब-हवा-ए-नफ़स-ए-ताज़ा-ए-जानाना चलें गिर्या-ए-नीम-शब ओ आह-ए-सहर-गाही को चंग ओ बरबत पे नचाते हुए तुरकाना चलें ता न महसूस हो वामांदगी-ए-राह-ए-दराज़ ज़ुल्फ़-ए-ख़ूबाँ का सुनाते हुए अफ़्साना चलें फेंक कर सुब्हा ओ सज्जादा ओ दस्तार ओ कुलाह ब रबाब ओ दफ़ ओ तम्बूरा ओ पैमाना चलें नग़्मा ओ साग़र ओ ताऊस ओ ग़ज़ल के हमराह सू-ए-ख़ुम-ख़ाना पय-ए-सज्दा-ए-रिन्दाना चलें ख़ुश्क ज़र्रों पे मचल जाए शमीम ओ तसनीम सब्त करते हुए यूँ लग़्ज़िश-ए-मस्ताना चलें दामन-ए-'जोश' में फिर भर के मता-ए-कौनैन ख़िदमत-ए-पीर-ए-मुग़ाँ में पय-ए-नज़राना चलें

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