मिला जो मौक़ा तो रोक दूँगा 'जलाल' रोज़-ए-हिसाब तेरा
मिला जो मौक़ा तो रोक दूँगा 'जलाल' रोज़-ए-हिसाब तेरा पढूँगा रहमत का वो क़सीदा कि हँस पड़ेगा अज़ाब तेरा

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