इक न इक ज़ुल्मत से जब वाबस्ता रहना है तो 'जोश'
इक न इक ज़ुल्मत से जब वाबस्ता रहना है तो 'जोश' ज़िंदगी पर साया-ए-ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ क्यूँ न हो

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