ऐ मलीहाबाद के रंगीं गुलिस्ताँ अलविदा'अ
अलविदा'अ ऐ सर-ज़मीन-ए-सुब्ह-ए-ख़ंदाँ अलविदा'अ
अलविदा'अ ऐ किश्वर-ए-शेर-ओ-शबिस्ताँ अलविदा'अ
अलविदा'अ ऐ जल्वा-गाह-ए-हुस्न-ए-जानाँ अलविदा'अ
तेरे घर से एक ज़िंदा लाश उठ जाने को है
आ गले मिल लें कि आवाज़-ए-जरस आने को है
आ कलेजे में तुझे रख लूँ मिरे ''क़स्र-ए-सहर''
इस किताब-ए-दिल के हैं औराक़ तेरे बाम-ओ-दर
जा रहा हूँ तुझमें क्या क्या यादगारें छोड़ कर
आह कितने तूर ख़्वाबीदा हैं तेरे बाम पर
रूह हर शब को निकल कर मेरे जिस्म-ए-ज़ार से
आ के सर टकराएगी तेरे दर-ओ-दीवार से
हाए क्या-क्या नेमतें मुझ को मिली थीं बे-बहा
ये ख़मोशी ये खुले मैदान ये ठंडी हवा
वाए ये जाँ-बख़्श बुस्ताँ हाए ये रंगीं फ़ज़ा
मर के भी इन को न भूलेगा दिल-ए-दर्द-आश्ना
मस्त कोयल जब दकन की वादियों में गाएगी
ये सुबुक छाँव बबूलों की बहुत याद आएगी
कल से कौन इस बाग़ को रंगीं बनाने आएगा
कौन फूलों की हँसी पर मुस्कुराने आएगा
कौन इस सब्ज़े को सोते से जगाने आएगा
कौन जागेगा क़मर के नाज़ उठाने के लिए
चाँदनी रातों को ज़ानू पर सुलाने के लिए
आम के बाग़ों में जब बरसात होगी पुर-खरोश
मेरी फ़ुर्क़त में लहू रोएगी चश्म-ए-मय-फ़रोश
रस की बूँदें जब उड़ा देंगी गुलिस्तानों के होश
कुंज-ए-रंगीं में पुकारेंगी हवाएँ ''जोश जोश''
सुन के मेरा नाम मौसम ग़म-ज़दा हो जाएगा
एक महशर सा गुलिस्ताँ में बपा हो जाएगा
सुब्ह जब इस सम्त आएगी बर-अफ़गन्दा-नक़ाब
आह कौन इस दिल-कुशा मैदाँ में छेड़ेगा रुबाब
इस उफ़ुक़ पर शब को जब अंगड़ाई लेगा माहताब
चाँदनी के फ़र्श पर लहराएगा किस का शबाब
जगमगाएगी चमन में पंखुड़ी किस के लिए
रंग बरसाएगी सावन की झड़ी किस के लिए
घर से बे-घर कर रही है आह फ़िक्र-ए-रोज़गार
सर-निगूँ है फ़र्त-ए-ग़ैरत से अब-ओ-जद का वक़ार
ख़िल'अत-ए-माज़ी है जिस्म-ए-ज़िंदगी पर तार तार
फिर भी आँखों में है आबाई इमारत का ख़ुमार
शम्अ ख़ल्वत में है रौशन तीरगी महफ़िल में है
रुख़ पे गर्द-ए-बेकसी शान-ए-रियासत दिल में है
कूच का पैग़ाम ले कर आ गया महर-ए-मुनीर
घर का घर है वक़्फ़-ए-मातम ज़र्द हैं बरना-ओ-पीर
रुख़स्त-ए-बुलबुल से नालाँ हैं चमन के हम-सफ़ीर
आ रही है कान में आवाज़-ए-'गोया'-ओ-'बशीर'
छुट रहा है हात से दामन मलीहाबाद का
रंग फ़क़ है इज़्ज़त-ए-देरीना-ए-अज्दाद का
क्या बताऊँ दिल फटा जाता है मेरा हम-नशीं
आएँगे याँ ख़िर्मन-ए-अज्दाद के जब ख़ोशा-चीं
आ के दरवाज़े पे जैसे ही झुकाएँगे जबीं
घर का सन्नाटा सदा देगा ''यहाँ कोई नहीं''
जूद-ओ-बख़्शिश का कलेजा ग़र्क़-ए-ख़ूँ हो जाएगा
मेरे घर का परचम-ए-ज़र सर-निगूँ हो जाएगा
आह ऐ दौर-ए-फ़लक तेरा नहीं कुछ ए'तिबार
मिट के रहती है तिरे जौर-ए-ख़िज़ाँ से हर बहार
नौ-ए-इंसाँ को नहीं तेरी हवाएँ साज़गार
फ़िक्र-ए-दुनिया और शाएर तुफ़ है ऐ लैल-ओ-नहार
मौज-ए-कौसर वक़्फ़ हो और तिश्ना-कामी के लिए
ख़्वाजगी रख़्त-ए-सफ़र बाँधे ग़ुलामी के लिए
आ गले मिल लें ख़ुदा-हाफ़िज़ गुलिस्तान-ए-वतन
ऐ 'अमानीगंज' के मैदान ऐ जान-ए-वतन
अलविदा'अ ऐ लाला-ज़ार ओ सुम्बुलिस्तान-ए-वतन
अस्सलाम ऐ सोहबत-ए-रंगीन-ए-यारान-ए-वतन
हश्र तक रहने न देना तुम दकन की ख़ाक में
दफ़्न करना अपने शाएर को वतन की ख़ाक में