मिरे हमदम मिरे दोस्त!
गर मुझे इस का यक़ीं हो मिरे हमदम मिरे दोस्त गर मुझे इस का यक़ीं हो कि तिरे दिल की थकन तिरी आँखों की उदासी तेरे सीने की जलन मेरी दिल-जूई मिरे प्यार से मिट जाएगी गर मिरा हर्फ़-ए-तसल्ली वो दवा हो जिस से जी उठे फिर तिरा उजड़ा हुआ बे-नूर दिमाग़ तेरी पेशानी से ढल जाएँ ये तज़लील के दाग़ तेरी बीमार जवानी को शिफ़ा हो जाए गर मुझे इस का यक़ीं हो मिरे हमदम मरे दोस्त रोज़ ओ शब शाम ओ सहर मैं तुझे बहलाता रहूँ मैं तुझे गीत सुनाता रहूँ हल्के शीरीं आबशारों के बहारों के चमन-ज़ारों के गीत आमद-ए-सुब्ह के, महताब के, सय्यारों के गीत तुझ से मैं हुस्न-ओ-मोहब्बत की हिकायात कहूँ कैसे मग़रूर हसीनाओं के बरफ़ाब से जिस्म गर्म हाथों की हरारत में पिघल जाते हैं कैसे इक चेहरे के ठहरे हुए मानूस नुक़ूश देखते देखते यक-लख़्त बदल जाते हैं किस तरह आरिज़-ए-महबूब का शफ़्फ़ाफ़ बिलोर यक-ब-यक बादा-ए-अहमर से दहक जाता है कैसे गुलचीं के लिए झुकती है ख़ुद शाख़-ए-गुलाब किस तरह रात का ऐवान महक जाता है यूँही गाता रहूँ गाता रहूँ तेरी ख़ातिर गीत बुनता रहूँ बैठा रहूँ तेरी ख़ातिर पर मिरे गीत तिरे दुख का मुदावा ही नहीं नग़्मा जर्राह नहीं मूनिस-ओ-ग़म ख़्वार सही गीत नश्तर तो नहीं मरहम-ए-आज़ार सही तेरे आज़ार का चारा नहीं नश्तर के सिवा और ये सफ़्फ़ाक मसीहा मिरे क़ब्ज़े में नहीं इस जहाँ के किसी ज़ी-रूह के क़ब्ज़े में नहीं हाँ मगर तेरे सिवा तेरे सिवा तेरे सिवा

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