एक नग़्मा करबला-ए-बैरुत के लिए
बैरूत निगार-ए-बज़्म-ए-जहाँ बैरूत बदील-ए-बाग़-ए-जिनाँ बच्चों की हँसती आँखों के जो आइने चकना-चूर हुए अब उन के सितारों की लौ से इस शहर की रातें रौशन हैं और रख़्शाँ है अर्ज़-ए-लबनाँ बैरूत निगार-ए-बज़्म-ए-जहाँ जो चेहरे लहू के ग़ाज़े की ज़ीनत से सिवा पुर-नूर हुए अब उन के रंगीं परतव से इस शहर की गलियाँ रौशन हैं और ताबाँ है अर्ज़-ए-लबनाँ बैरूत निगार-ए-बज़्म-ए-जहाँ हर वीराँ घर, हर एक खंडर हम पाया-ए-क़स्र-ए-दारा है हर ग़ाज़ी रश्क-ए-अस्कंदर हर दुख़्तर हम-सर-ए-लैला है ये शहर अज़ल से क़ाएम है ये शहर अबद तक दाइम है बैरूत निगार-ए-बज़्म-ए-जहाँ बैरूत बदील-ए-बाग़-ए-जिनाँ

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