ऐ शाम मेहरबाँ हो
ऐ शाम मेहरबाँ हो ऐ शाम-ए-शहरयाराँ हम पे भी मेहरबाँ हो दोज़ख़ी दोपहर सितम की बे-सबब सितम की दोपहर दर्द-ओ-ग़ैज़-ओ-ग़म की बे-ज़बाँ दर्द-ओ-ग़ैज़-ओ-ग़म की इस दोज़ख़ी दोपहर के ताज़ियाने आज तन पर धनक की सूरत क़ौस-दर-क़ौस बट गए हैं ज़ख़्म सब खुल गए हैं दाग़ जाना था छट गए हैं तिरे तोशे में कुछ तो होगा मरहम-ए-दर्द का दो-शाला तन के उस अंग पर उढ़ा दे दर्द सब से सिवा जहाँ हो ऐ शाम मेहरबाँ हो ऐ शाम-ए-शहरयाराँ हम पे मेहरबाँ हो दोज़ख़ी दश्त नफ़रतों के बेदर्द नफ़रतों के किर्चियाँ दीदा-ए-हसद की ख़स-ओ-ख़ाशाक रंजिशों के इतनी सुनसान शाहराहें इतनी गुंजान क़त्ल-गाहें जिन से आए हैं हम गुज़र कर आबला बन के हर क़दम पर यूँ पाँव कट गए हैं रस्ते सिमट गए हैं मख़मलें अपने बादलों की आज पाँव-तले बिछा दे शाफ़ी-ए-कर्ब-ए-रह-रवाँ हो ऐ शाम मेहरबाँ हो ऐ मह-ए-शब-ए-निगाराँ ऐ रफ़ीक़-ए-दिल-फ़िगाराँ इस शाम हम-ज़बाँ हो ऐ शाम मेहरबाँ हो ऐ शाम मेहरबाँ हो ऐ शाम-ए-शहरयाराँ हम पे मेहरबाँ हो

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