सहल यूँ राह ज़िंदगी की है
सहल यूँ राह ज़िंदगी की है हर क़दम हम ने आशिक़ी की है हम ने दिल में सजा लिए गुलशन जब बहारों ने बे-रुख़ी की है ज़हर से धो लिए हैं होंट अपने लुत्फ़-ए-साक़ी ने जब कमी की है तेरे कूचे में बादशाही की जब से निकले गदागरी की है बस वही सुर्ख़-रू हुआ जिस ने बहर-ए-ख़ूँ में शनावरी की है ''जो गुज़रते थे 'दाग़' पर सदमे'' अब वही कैफ़ियत सभी की है

Read Next