फिर हरीफ़-ए-बहार हो बैठे
फिर हरीफ़-ए-बहार हो बैठे जाने किस किस को आज रो बैठे थी मगर इतनी राएगाँ भी न थी आज कुछ ज़िंदगी से खो बैठे तेरे दर तक पहुँच के लौट आए इश्क़ की आबरू डुबो बैठे सारी दुनिया से दूर हो जाए जो ज़रा तेरे पास हो बैठे न गई तेरी बे-रुख़ी न गई हम तिरी आरज़ू भी खो बैठे 'फ़ैज़' होता रहे जो होना है शेर लिखते रहा करो बैठे

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