मिरी चश्म-ए-तन-आसाँ को बसीरत मिल गई जब से
मिरी चश्म-ए-तन-आसाँ को बसीरत मिल गई जब से बहुत जानी हुई सूरत भी पहचानी नहीं जाती

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