हम ने सब शेर में सँवारे थे
हम ने सब शेर में सँवारे थे हम से जितने सुख़न तुम्हारे थे रंग-ओ-ख़ुशबू के हुस्न-ओ-ख़ूबी के तुम से थे जितने इस्तिआरे थे तेरे क़ौल-ओ-क़रार से पहले अपने कुछ और भी सहारे थे जब वो लाल-ओ-गुहर हिसाब किए जो तिरे ग़म ने दिल पे वारे थे मेरे दामन में आ गिरे सारे जितने तश्त-ए-फ़लक में तारे थे उम्र-ए-जावेद की दुआ करते 'फ़ैज़' इतने वो कब हमारे थे

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