न तेरा क़ुर्ब न बादा है क्या किया जाए
न तेरा क़ुर्ब न बादा है क्या किया जाए फिर आज दुख भी ज़ियादा है क्या किया जाए हमें भी अर्ज़-ए-तमन्ना का ढब नहीं आता मिज़ाज-ए-यार भी सादा है क्या किया जाए कुछ अपने दोस्त भी तरकश-ब-दोश फिरते हैं कुछ अपना दिल भी कुशादा है क्या किया जाए वो मेहरबाँ है मगर दिल की हिर्स भी कम हो तलब करम से ज़ियादा है क्या किया जाए न उस से तर्क-ए-तअल्लुक़ की बात कर पाएँ न हमदमी का इरादा है क्या किया जाए सुलूक-ए-यार से दिल डूबने लगा है 'फ़राज़' मगर ये महफ़िल-ए-आदा है क्या किया जाए

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