नहीं कि नामा-बरों को तलाश करते हैं
हम अपने बे-ख़बरों को तलाश करते हैं
मोहब्बतों का भी मौसम है जब गुज़र जाए
सब अपने अपने घरों को तलाश करते हैं
सुना है कल जिन्हें दस्तार-ए-इफ़्तिख़ार मिली
वो आज अपने सरों को तलाश करते हैं
ये इश्क़ क्या है कि इज़हार-ए-आरज़ू के लिए
हरीफ़ नौहागरों को तलाश करते हैं
ये हम जो ढूँडते फिरते हैं क़त्ल-गाहों को
दर-अस्ल चारागरों को तलाश करते हैं
रिहा हुए पे अजब हाल है असीरों का
कि अब वो अपने परों को तलाश करते हैं
'फ़राज़' दाद के क़ाबिल है जुस्तुजू उन की
जो हम से दर-बदरों को तलाश करते हैं