साक़ी ये ख़मोशी भी तो कुछ ग़ौर-तलब है
साक़ी ये ख़मोशी भी तो कुछ ग़ौर-तलब है साक़ी तिरे मय-ख़्वार बड़ी देर से चुप हैं

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