प्रेत का बयान
"ओ रे प्रेत -" कडककर बोले नरक के मालिक यमराज -"सच - सच बतला ! कैसे मरा तू ? भूख से , अकाल से ? बुखार कालाजार से ? पेचिस बदहजमी , प्लेग महामारी से ? कैसे मरा तू , सच -सच बतला !" खड़ खड़ खड़ खड़ हड़ हड़ हड़ हड़ काँपा कुछ हाड़ों का मानवीय ढाँचा नचाकर लंबे चमचों - सा पंचगुरा हाथ रूखी - पतली किट - किट आवाज़ में प्रेत ने जवाब दिया - " महाराज ! सच - सच कहूँगा झूठ नहीं बोलूँगा नागरिक हैं हम स्वाधीन भारत के पूर्णिया जिला है , सूबा बिहार के सिवान पर थाना धमदाहा ,बस्ती रुपउली जाति का कायस्थ उमर कुछ अधिक पचपन साल की पेशा से प्राइमरी स्कूल का मास्टर था -"किन्तु भूख या क्षुधा नाम हो जिसका ऐसी किसी व्याधि का पता नहीं हमको सावधान महाराज , नाम नहीं लीजिएगा हमारे समक्ष फिर कभी भूख का !!" निकल गया भाप आवेग का तदनंतर शांत - स्तंभित स्वर में प्रेत बोला - "जहाँ तक मेरा अपना सम्बन्ध है सुनिए महाराज , तनिक भी पीर नहीं दुःख नहीं , दुविधा नहीं सरलतापूर्वक निकले थे प्राण सह न सकी आँत जब पेचिश का हमला .." सुनकर दहाड़ स्वाधीन भारतीय प्राइमरी स्कूल के भुखमरे स्वाभिमानी सुशिक्षक प्रेत की रह गए निरूत्तर महामहिम नर्केश्वर।

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