फसल
एक के नहीं, दो के नहीं, ढेर सारी नदियों के पानी का जादू: एक के नहीं, दो के नहीं, लाख-लाख कोटि-कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा: एक के नहीं, दो के नहीं, हज़ार-हज़ार खेतों की मिट्टी का गुण धर्म: फसल क्‍या है? और तो कुछ नहीं है वह नदियों के पानी का जादू है वह हाथों के स्पर्श की महिमा है भूरी-काली-संदली मिट्टी का गुण धर्म है रूपांतर है सूरज की किरणों का सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का!

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